जायजा
तुफान ही तुफान....... उत्तराखंड
अरुण प्रताप सिंह
उत्तराखंड ने 28 मई को दो किस्म के तुफान देखे। पहला तुफान
इंद्रदेवता ने दिखाया और उसने इस कदर तबाही मचाई कि कई लोगों की मौत हो गई, राज्य
के कई क्षेत्रों में सैकड़ों घर तबाह होगए और सैकड़ों की तादाद में निरीह पशु भी
जान खो बैठे। चार धाम यात्रा जो इस समय जोरों पर है, वह भी प्रभावित हुई और राज्य
के अनेक मार्ग अवरुद्ध हो गए हैं। राहत कार्य शुरू किये गये हैं पर उनकी गति बहुत
सुस्त हैं। अनेक क्षेत्रों में अभी तक बिजली की आपूर्ति सुचारू नहीं हो सकी है।
दूसरा तुफान राजनीतिक प्रकृति का है और उसके दूरगामी राजनीतिक
परिणाम निश्चित हैं। उत्तराखंड में राज्यसभा की एक सीट जुलाई में रिक्त हो रही है
और उसके लिए 11 जून को मतदान होना है। भाजपा की ओर से तरुण विजय का कार्यकाल
समाप्त हो रहा है। यदि दो माह पहले उत्तराखंड की राजनीति में भूचाल न आया होता तो
कांग्रेस की जीत स्वाभाविक मानी जाती और संभवतः उसकी चर्चा भी नहीं होती। कांग्रेस
लगातार उत्तराखंड से बाहरी लोगों को राज्यसभा भेजती रही है। पूर्व में कैप्टेन
सतीश शर्मा, सत्यव्रत चतुर्वेदी और वर्तमान में राज बब्बर कांग्रेस की ओर से
राज्यसभा में राज्य का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं या कर रहे हैं। पार्टी के सूत्रों
के अनुसार इस बार भी तैयारी बाहरी उम्मीदवार उतारने की ही थी और इसी क्रम में
पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल का नाम ही सबसे आगे था। पर मार्च के महीने में
राजनीतिक संकट के चलते लगभग दो महीने के लिए मुख्यमंत्री हरीश रावत को अपनी सीट
गंवानी पड़ी। नौ विधायकों की बगावत के चलते कांग्रेस कमजोर हुई और आज वह बहुमत भी
खो चुकी है। पर चूंकि बागी विधायकों की सदस्यता फिलहाल निरस्त है, इसलिए अपने
सहयोगी दलों व निर्दलीयों के सहयोग से वह फिर भी राज्यसभा चुनाव लड़ने की स्थिति
में आ गई है। पर संकट का तुफान इसके बावजूद कांग्रेस पर मंडरा रहा है। निश्चित रूप
से कांग्रेस की हाईकमान भी पिछले दिनों काफी कमजोर स्थिति में आ गया है और इसके
चलते, पार्टी ने हरीश रावत की ही सलाह पर उन्हीं के सिपहसलार प्रदीप टम्टा को
मैदान में उतार दिया है। प्रदेश कांग्रेस की ओर से खुद प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष
किशोर उपाध्याय भी बड़े दावेदार थे। किशोर तो किसी तरह चुप करा दिए गये हैं पर
कुमाऊं के अन्य बड़े दलित कांग्रेसी नेता यशपाल आर्य खुले तौर पर नाराज हो गए हैं।
दूसरी तरफ, पीडीएफ जोकि कई पार्टियों व निर्दलीयों का मोर्चा है, उसने भी कैबिनेट
मंत्री दिनेश धनै को मैदान में उतार दिया है। जाहिर है, रावत के सामने चौतरफा चुनौती
खड़ी है। अगर दिनेश धनै मैदान से नहीं हटते तो कांग्रेस की हार निश्चित है। भाजपा
धनै का समर्थन करने के मूड में दिख रही है। वैसे कांग्रेसी नेतृत्व यह मानकर चल
रहा है कि पीडीएफ को एक मंत्री पद और दे देने से वह अपनी उम्मीदवारी वापस ले सकता
है। दरअसल इस बात में एक और पेंच है। धनै और किशोर उपाध्याय दोनों ही आने वाले
विधानसभा चुनाव में टिहरी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस टिकट की दावेदारी कर रहे
हैं। यदि किशोर राज्यसभा चले जाते तो यह दावेदारी स्वतः ही समाप्त हो जाती।
एक और बात कांग्रेस को खास तौर पर गढ़वाल में कमजोर कर रही है।
राज्यसभा में प्रदेश का प्रतिनिधि करने वाले स्थानीय नेता महेंद्र सिंह माहरा भी
कुमाऊं से ही हैं। मुख्यमंत्री स्वयं भी कुमाऊं से हैं और प्रदीप भी कुमाऊं से हैं
जबकि स्पीकर गोबिंद सिंह कुंजवाल भी कुमाऊं से हैं। नौ बागी विधायकों में से आठ
गढ़वाल से हैं, हां इनमें से विजय बहुगुणा और अमृता रावत फिलहाल कुमाऊं का
प्रतिनिधित्व अवश्य कर रहे हैं। कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि
प्रदेश के सभी महत्वपूर्ण पदों पर हरीश रावत के अपने ही खासमखास बैठे हैं और यही
बात पार्टी में बगावत का मुख्य कारण बनी थी। बागी विधायक तो भाजपा में जा चुके
हैं। गढ़वाल में कांग्रेस के पास आज बड़े कद का कोई नेता नहीं रहा है जो आने वाले
विधानसभा चुनाव में उस पर भारी पड़ सकता है। उत्तराखंड की कुल 70 विधानसभा सीटों
में से 42 गढ़वाल मंडल में पड़ती हैं।
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